शुक्रवार, 27 मार्च 2015

उम्मीद भरा वो सारे पल (कविता)


उम्मीद भरा वो सारे पल, अब विखरता जा रहा है।
बीत गये सुख भरे पल, दु:ख भरा पल   आ रहा है।


एक-एक होकर सामने, धुधलापन होता जा रहा है।
कायम है अंधेरा सामने,बढता हुआ चला आ रहा है।


रोशनी के लिये हर पल, कोशिश करता जा रहा हूँ।
मगर कमी तेल का सामने,नज़र में पड़ता जा रहा है।


रोशनी के बिना एक पल, आगे नहीं बढ़ा जा रहा है।
अंधकारमय भविष्य हरक्षण, ऐसा समझ में आ रहा है।


आशातीत किसी के सामने,नाउम्मीद नजर आ रहा है।
समस्या है मेरे सामने ,समझ में कुछ नहीं आ रहा है।

----------------रमेश कुमार सिंह /०८-०३-२०१५

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें