शनिवार, 13 जून 2015

भ्रष्टाचार (कविता)

आज जरूरत है भ्रष्टाचार से देश को बचाने की
 मार झेल रहे है गरीब स्वतंत्रता में परतंत्रता की
 हमें उनको उठाना है जिसे है प्रबल उमंगें जीवन की
 इसलिए आओ युवक लगा दो बाजी अपने जीवन की
नहीं है कोई व्यक्ति इनके उपर ध्यान करने वाला
 बन जाएं हम सब मिलकर इनके भविष्य का रखवाला
 इनके रक्षात्मक रणनीति हम सबको बनाना होगा
 इनके अन्दर पैदा करना भ्रष्टाचार से लड़ने की ज्वाला
जहां देखते है, वहाँ मिलता भ्रष्टाचार का पलड़ा भारी
 यहा इनके जीवन की नईया हो गई है विनाशकारी
 बने बहुत से योजना इनको उपर उठाने की सरकारी
 राजनेताओं, अधिकारियों से हो गई इनकी बरबादी
सरकार के तरफ दे दिया गया नाम इनका महादलित
 हमेशा ज्ञान बिन आलोकित पथ से रहते हैं बिचलित
 ये भी है हमारे बन्धु ,हमारा फर्ज है इन्हे राह दिखाना
 इनके अन्दर लड़ने के लिए करना है ज्ञान को संचालित।
इनका भी हक बनता है हमारे साथ -साथ चलने की
 कदम से कदम मिलाकर गले में गले मिलाकर चलने की
 दुनिया से अलग रहने के लिए ऐसा क्यों बना दिया गया है
 सरकार से लड़ाई करें इनका भी भविष्य उज्ज्वल करने की
@रमेश कुमार सिंह

सोमवार, 8 जून 2015

मुक्तक

जिन्दगी बहुत हसीन है हँस- हँस के जीना यारों ।
 दुनिया बहुत लम्बी-चौड़ी है सबको हँसाना यारों।
 अपने तरफ से सबका पूर्ण सहयोग करना यारों।
 किसी को दर्द की दुनिया मे पहुचाना नही यारों ।
@रमेश कुमार सिंह
 

पर्यावरण (कविता एवं मुक्तक)

वृक्षों से मिलती है स्वच्छ हवा
लोग वृक्षों को क्षति  न पहुचाएं।
इन्हीं से मिलती है सुन्दरता
इस सुन्दर सुगंध को न गवाएं।
महत्वपूर्ण हिस्सा जिन्दगी के हैं
अपने परिवार का अंग बनाएँ।
बच्चों की तरह इन्हें जन्म देकर
सुन्दर सबका भविष्य बनाएँ।
वायुमंडल का संतुलन बनाकर
निशुल्क प्रदान करते हैं सेवाएं
वातावरण को शुद्धिकरण कर
जीवों को प्राणवायु उम्र भर दिलाए।
हमारे आवरण बन-रक्षा-कर
जीवन की नईया पार लगाते
इर्द-गिर्द कवक्ष-बन-कर
आपदाओं से रक्षा करते।
बाढ़ -सुखाड़ की कमी कर के
अच्छे मानसून को बुलाते
इसी मानसून पर निर्भर हो के
पृथ्वीतल पर अच्छा माहौल बनाते।
पर्यावरण  पर  संकट घहराया है
मानव ही इस कुकृत्य को रचाया है
जल,ध्वनि प्रदूषण कहीं करता है
कहीं करता है वायु ,मृदा प्रदुषण।
सब मिलकर परि-आवरण को
शुद्ध कर स्वच्छता का आनंद ले
यही है असली मानवता का धर्म।
यही करने का जिन्दगी में संकल्प ले।
@रमेश कुमार सिंह / ०५-०६-२०१५
        ~~~~~मुक्तक ~~~~
पर्यावरण का सुरक्षा  करना हमारा धर्म है
वृक्ष और पौधा लगाना यही हमारा कर्म है
इससे वायुमंडल का संतुलन हो जाता है
पृथ्वी को हरा भरा करना यही सत्कर्म है
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
दुनिया वालों से हमारा एक यही पुकार है
बच्चों की भान्ति वृक्षों का सत्कार करना है
वृक्षों से धरा को सजाने और सँवारने के लिए,
वृक्षारोपण  के लिए सभी को प्रेरणा देना है
@रमेश कुमार सिंह

मंगलवार, 2 जून 2015

जिन्दगी (कविता)

जिन्दगी भी एक अनुठा पहेली है
कभी खुशी तो कभी याद सहेली है
कभी उछलते है सुनहरे बागानों में
कभी दु:ख भरी यादें रूलाती है

अजब  उतार चढ़ाव आते रहते है
बचपना खेल-खेल में बित जाते हैं
भागमभाग जवानी में आ जाते हैं
कई उलझने मन में जगह बनाते हैं


मानसिक तनाव बढ़ने लगते हैं
एक दूसरे से मसरफ बिगड़ते हैं
लोग ईमानदारी से दूर भागते हैं
ईर्ष्या और द्वेष को गले लगाते है


जिन्दगी एक अनबुझ रास्ता है
इसे समझ पाना एक समस्या है
समझने में कड़ी मेहनत करते हैं
तब इस सफर को तय करते हैं


वाह रे जिन्दगी क्या रंग लाती है
बचपन में उमंग भर  देती है
जवानी में भाग-दौड़ ला देती है
और बुढापा में स्थिर कर देती है


यही है जिन्दगी का रहनुमा दस्तूर
हर पल को कर देता है क्षण भंगुर
कराता है सबको यही पर सफर
चाहे वो गाँव हो या शहर


यही है जिन्दगी की कहनी
जो कभी ला देता है रवानगी
और कभी ला देता है दीवानगी
सिखाता है सबको जिन्दगानी
-@रमेश कुमार सिंह
  १२-०५-२०१५